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मकसद की भनक

मकसद की भनक
प्रतियोगिता के लिए 


221 2122 221 2122

समझी कहाँ ही उसने मज़बूरियां हमारी।
दिखतीं जिसे हमेशा नादानियाँ हमारी।।

हम तो खड़े वहीं पर जिस मोड़ तुम गए थे।
पर संग चली हैं तेरे परछाइयाँ हमारी।

जानम भुला न पाओ वो चीज़ हमको जानों।
आएँगी याद अक्सर अच्छाइयाँ हमारी।।
  
करते रहे शिकायत शिकवे कई मुसलसल।
समझे कभी तो होते दुश्वरियां हमारी।

हैवान एक देखा नज़रों में वासना थी।
अबसार में भरी थीं चिंगारियाँ हमारी।

मकसद तुम्हारा जान के जानम सम्भल गए।
समझे नहीं कभी भी खामोशियाँ हमारी।


 हैं ज़ख्म अब भी रिसते तानों के खंज़रो के।
पर अब लगीं विफ़रने खामोशियाँ हमारी।

चल स्नेह आज चलके खुद के लिए भी जी ले।
दिखती नहीं उन्हें जब कुर्बानियाँ हमारी।

स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'


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11 Comments

Punam verma

22-Aug-2022 09:07 PM

Very nice

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Behtreen 💐

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Pankaj Pandey

22-Aug-2022 03:00 PM

Behtarin rachana

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